बूढ़ा बाळ जवान गया।
कुछ बेली समसाण गया,
कोई कबरिस्तान गया।
पैल्यां तो सामान गया,
पाछा सैं महमान गया।
ईं को निकळ्यो योही सार,
वै पाणी मुलतान गया।
दाता बलि, दधीच हरिचन्द,
वै दानी, वै दान गया।
नहिं आया ’मे का मिजमान,
बादळ तंबू ताण गया।
कुण कितना पाणी कै बीच,
काम पड्यो जद जाण गया।
नैंण कटार अनोखी मार,
प्राण बच्या, ईमान गया।
अपणी संस्कृति रही अटूट,
मिसर, रोम, यूनान गया।
हठयोगी अर संत महंत,
बादषाह सुलतान गया।
हुयौ ‘बिहारी’ दंतविहीण,
काथा, चूना, पान गया।
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